रामलीला के ऐसे ही रोचक किस्से पढ़ें: परशुराम का क्रोध और रावण का अहंकार

रामलीला के ऐसे ही रोचक किस्से पढ़ें

शारदीय नवरात्र में रामलीलाएं होती हैं और दशहरे पर रावण को जलाया जाता है। रामलीला के कुछ दिलचस्प प्रसंग आज आपको बताएंगे। इसमें आप परशुराम का क्रोध और रावण का अहंकार देखेंगे।

रामलीला 2023 का दौर शुरू हो गया है। ये लीलाएं कई वर्षों से चल रही हैं, और हर साल उन्हें देखने की उत्सुकता उतनी ही बढ़ जाती है। तकनीक के कारण प्रस्तुति की शैली बदल जाए, मूल कहानी वही रहती है। लेकिन रामलीला के कुछ दृश्य आपको अधिक आकर्षित करते हैं।

धनुष यज्ञ: भगवान राम सीता के स्वयंवर में शिव ने धनुष तोड़ दिया। परशुराम वहाँ आता है और भगवान शिव का धनुष किसने तोड़ दिया, इस बात पर नाराज होता है कि धनुष टूटने से जो भयानक शोर हुआ था। वह राजा जनक से कहते हैं कि जिसने भी शिव धनुष तोड़ा है, उसे समाज से बाहर करो; अगर ऐसा नहीं होता तो यहाँ के सभी राजा मारे जाएंगे और मैं मिथिला राज्य की सीमा तक धरती को हिला दूंगा। मनुष्य ने लिखा है:

रामलीला के ऐसे ही रोचक किस्से पढ़ें

मैं जड़ जनक धनुष कै तोरा, बहुत रिसकर बोले।

रामलीला  में परशुराम की बातों का जवाब लक्ष्मण देते हैं। वह परशुराम की उक्ति को याद दिलाने की कोशिश करते हैं कि “बहु धनुहि तोरी लरिकाईं, कबहुं ना अस रिस कीन्ह गोसाईं”, जिसका अर्थ है कि जब मैं छोटा था, तुमने ऐसा क्रोध नहीं किया था।

रामलीला  कथा यह भी बताती है कि लक्ष्मण एक बार अपनी मां सुमित्रा के साथ एक स्थान पर जा रहे थे। रास्ते में उन लोगों ने परशुराम की कुटिया में विश्राम किया। परशुराम ही एकमात्र ऋषि थे, जो शास्त्र और हथियार दोनों पर समान अधिकार रखते थे। उनकी कुटिया में कई छोटे-छोटे धनुष थे। उनमें से कई को जन्म ने बाल सुलभ खेल में तोड़ दिया था। परशुराम ने कहा कि जाने दो बालक है जब माता सुमित्रा ने इस पर डपटा। परशुराम को लक्ष्मण वही याद दिलाते हैं, लेकिन वे क्रोध में हैं और इस संकेत को नहीं समझते।

रामलीला  में दिनकर रश्मिरथी में परशुराम की कुटिया का वर्णन करते हुए लिखते हैं कि वीरता तपोवन में आई है, क्या पुण्य कमाने के लिए है, साधना करने के लिए है, दैहिक शक्ति जगाने के लिए मन ने तन का सिद्ध यंत्र या शस्त्रों में पाया है, या कि वीर कोई योगी से युक्ति सीखने आया है।

लक्ष्मण ने परशुराम को भी क्रोधित करते हुए कहा कि लखन ने कहा कि हंसि हमरे जाना, सुनहु देव सब धनुष समाना का छति लाभ जून धनु तोरें, देखा राम नयन के भोरें।

लक्ष्मण और परशुराम भी एक छोटी सी बहस करते हैं। “इहां कुम्हड़ बतिया कोऊ नाहीं, दे तर्जनी देखी मरि जाहीं,” श्रीकृष्ण कहते हैं।लक्ष्मण भी परशुराम को बार-बार कुठार उठाते हुए चैलेंज करते हैं कि यहां कोई कुम्हड़ा का फूल नहीं है जो आपकी तर्जनी देखकर मर जाएगा। साथ ही, आप बार-बार इसे कुठार दिखाते हैं, ऐसा लगता है कि आप पहाड़ को फूंक मारकर उड़ाना चाहते हैं।

 

रामलीला  लक्ष्मण ने पहले ही जनक की कहानी कि “वीर विहीन मही मैं जानी” का जवाब देते हुए कहा था कि जहां रघुवंशियों में कोई है, वहां धरती वीरों से खाली है। यहां रघुकुल मणि रामचंद्र हैं, और राजा जनक ने ऐसा कुछ नहीं कहा।
रघुबंसिन्ह महुँ जहँ कोई होई, तेहिं समाज अस कहइ न कोई कही। जन्म जसि अनुचित बानी बिद्यमान रघुकुलमनि जानी

राम-बालि युद्ध में, राम ने बालि को तीर मार डाला। बालि वीरों की भांति जमीन पर पड़ा है। राम उसे मिलता है। Bali उलाहना देते हुए पूछता है, “तुमने तो धर्म की रक्षा करने के लिए आया था, फिर मुझे शिकारी की तरह छुप कर क्यों मारा?” तुम मुझे इतना प्यार कैसे करते थे, सुग्रीव? मेरी आपसे क्या शत्रुता थी?

रामलीला  में धर्म हेतु अवतरेहु गोसाईं, मारेहु मोहिं ब्याध की नाईं मैं बैरी सुग्रीव पिआरा, अवगुन कवन नाथ मोहि मारा।
भगवान राम बालि को बताते हैं कि मूर्ख बाली, छोटे भाई की पत्नी, बहन और पुत्र की पत्नी चारों कन्या के समान हैं और किसी को बुरा देखने वाले की हत्या करने में कोई पाप नहीं होता। मानस में कहा गया है कि अनुज बधू, भगिनी, सुत नारी, सुनु सठ कन्या सम ए चारी इन्हहि कुदृष्ट बिलोकइ जोई, ताहि बधे कछु पाप न होई।

लेकिन इसके बाद राम के विचार चमत्कारिक रूप से बदल जाते हैं। यह भी हो सकता है कि उस समय क्या हुआ जब राम बालि से कहते हैं कि मैं तुम्हारे घावों को ठीक कर सकता हूँ और तुम्हारे चले गए प्राण को वापस ला सकता हूँ। लेकिन बालि इस बात को स्पष्ट रूप से अस्वीकार करता है कि साधु-संन्यासी जन्म-जन्म तक संघर्ष करते हैं, लेकिन अंत में उनके मुंह पर राम शब्द नहीं आता। जब आप मेरे सामने खड़े हैं और मौत आ रही है, मेरे लिए मौत का इससे अच्छा संयोग क्या होगा? जीवन में इससे अच्छा क्या होगा?

रामलीला के ऐसे ही रोचक किस्से पढ़ें

रामलीला  में  अंगद रावण संवाद: अंगद रावण के दरबार में एक संधि प्रस्ताव लेकर जाते हैं, लेकिन वहां वे दशानन से बहुत बहस करते हैं। दरबार में घुसते ही रावण बंदर से पूछता है कि वे कौन हैं। रावण, या अंगद, कहता है कि मैं राम का दूत हूँ।
दसकंठ कवन ते बंदर, मैं रघुवीर दूत दसकंधर।

तुम कहते हो कि मेरे पिता से तुम्हारी मित्रता रही है, इसलिए मैं तुम्हारा भला चाहता हूँ। तुम सीता माता को भगवान राम को सौंप दो और उनसे अपने जीवन की भीख मांगो, तो वह तुम्हें क्षमा कर देंगे। उस काल में रावण ही अहंकार का आश्रय था, इसलिए जानकारों में मतभेद है कि अंगद रावण को भलाई की सलाह दे रहे थे या उसे उत्तेजित कर रहे थे। आगे बढ़ते हुए यह बहस स्तरहीन हो जाती है।

रामलीला में रावण कहता है कि तुम्हारे पिता की हत्या करने वाले व्यक्ति के दूत हो, इसलिए तुम कुल में कलंक बन गए हो। लंकापति फिर कहता है कि मैं रावण हूँ। जिसकी भुजाओं की शक्ति पूरी दुनिया जानती है। हे रावण, अंगद कहते हैं, तुम कौन से रावण हो? मैंने बहुत से रावणों के बारे में सुना है। कथानुसार, बच्चों ने रावण को घुड़साल में बांधकर बलि को जीतने पाताल गया था। रावण को बलि की कृपा से छुड़ाया गया था। बलिहि एक गयउ पताला, राखेउ बांधि सिसु्न्ह हयशाला।

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