रजब का चांद दिखने के बाद शुरू हुआ 813वां उर्स: अजमेर शरीफ दरगाह में होने वाली धार्मिक रस्में

रजब का चांद दिखने के बाद 31 दिसंबर 2024 से अजमेर में 813वां उर्स शुरू होगा। उर्स का नाम ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की पुण्यतिथि को दिया जाता है।

दुनिया भर से लोग अजमेर शरीफ में आयोजित होने वाले उर्स में हजरत ख्वाजा गरीब नवाज का सम्मान करते हैं। राजस्थान के अजमेर में ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की 813वीं उर्स की धार्मिक रस्में शुरू हो गईं।

दरगाह शरीफ अजमेर को 13वीं सदी के सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का अंतिम विश्राम स्थल माना जाता है। भारत में यह सबसे पवित्र धार्मिक स्थानों में से एक है। सूफी संत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की समाधि अजमेर शरीफ दरगाह में है। उन्हें ख्वाजा गरीब नवाज भी कहते हैं। चमत्कारकारी आध्यात्मिक उपदेशक मोईनुद्दीन चिश्ती थे। हिन्दु-मुस्लिम सभी को अजमेर शरीफ का दरगाह आकर्षित करता है, जो सदियों से श्रद्धा का स्थल है।

उर्स शरीफ उत्सव क्या है?

राजस्थान के अजमेर में ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर हर साल उर्स शरीफ का उत्सव मनाया जाता है। मोइनुद्दीन चिश्ती की पुण्यतिथि को उर्स कहते हैं। यह एक बड़ी धार्मिक घटना है, जो बहुत से लोगों को आकर्षित करती है। विभिन्न अनुष्ठान और आध्यात्मिक समारोह इस उत्सव में छह दिनों तक चलते हैं।

उर्स कब मनाया जाता है ((वर्ष 2025)

इस्लामिक कैलेंडर रजब में हर साल अजमेर शरीफ में उर्स मनाया जाता है। चांद दिखने पर ही उर्स शुरू होती है। अगर चांद किसी भी कारण से नहीं दिखाई देता, तो अगले दिन से छह दिनों तक उर्स करना चाहिए। सातवें दिन को उर्स-ए-छठी शरीफ कहते हैं। 813वें उर्स महोत्सव 31 दिसंबर 2024 से शुरू हुआ। उर्स के दौरान दरगार क्षेत्र में पूरी रात जिक्र और कव्वाली होती रहती है। इस दौरान देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु अजमेर आते हैं।

उर्स की रस्में और तिथियां

27 दिसंबर 2024 को अजमेर दरगाह में झंडे की रस्में हुई। 29 दिसंबर को ख्वाजा गरीब नवाज की मजार से हर वर्ष का संदल निकाला गया। 31 दिसंबर 2024 को रजब का चांद दिखाई दिया, जिसके साथ ख्वाजा गरीब नवाज का उर्स शुरू हुआ। रजब का चांद दिखने पर दरगाह का जन्नती दरवाजा भी आम लोगों के लिए खुला था। अजमेर उर्स 7 जनवरी 2025 को समाप्त होगा।

4 जनवरी को जुम्मे का दिन होगा। 7 जनवरी को छोटे कुल की रस्म होगी, और 10 जनवरी को खादिम समुदाय दरगाह में बड़े कुल की रस्म करेगा।

उर्स में कौन सी रस्में होती है

उर्स पर झंडा चढ़ाने की प्रथा बहुत पुरानी है। पेशावर के हजरत सैयद अब्दुल सत्तार बादशाह जान रहमतुल्ला अलैह ने 1928 में इस परंपरा को शुरू किया था। 1944 से 1991 तक भीलवाड़ा के लाल मोहम्मद गौरी परिवार ने यह परंपरा निभाई। 2006 तक मोईनुद्दीन गौरी ने झंडा चढ़ाया, और फखरुद्दीन गौरी अब अपने पिता की परंपरा को जारी रखते हैं। चादर चढ़ाने के दौरान 25 तोपों की सलामी और सूफीयाना कलाम भी होता है। मजार में चादर चढ़ाना भी एक रस्म है। ख्वाजा के लिए विभिन्न देशों से चादर आती है। पिछले दस साल से अजमेर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी चादर भेज रहे हैं। 1947 से आज तक, प्रधानमंत्री अजमेर में चादर भेजकर देश की शान्ति और भाईचारे की दुआ करते हैं।

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