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Manish Sisodia Bail: सुप्रीम कोर्ट ने AAP नेता मनीष सिसोदिया को जमानत किस आधार पर दी?

Manish Sisodia Bail: ईडी और सीबीआई ने कहा कि सिसोदिया को जमानत के लिए ट्रायल कोर्ट जाना चाहिए , लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज करते हुए कहा कि अगर उन्हें जमानत के लिए फिर से ट्रायल कोर्ट और फिर हाईकोर्ट भेजा जाता है, तो यह उनके लिए “सांप-सीढ़ी” का खेल खेलने जैसा होगा।

Manish Sisodia Bail: सुप्रीम कोर्ट ने आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया को लगभग 17 महीने बाद जमानत दी। दिल्ली आबकारी नीति मामले में कोर्ट ने सिसोदिया को बेल देते हुए कहा कि वह अपराध की गंभीरता का हवाला देते हुए जमानत का विरोध भी नहीं कर सकती है अगर जांच एजेंसियां जल्द सुनवाई सुनिश्चित नहीं कर सकती हैं।

10 लाख रुपये के मुचलके पर सिसोदिया को जमानत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पासपोर्ट सरेंडर करने और केस से जुड़े गवाहों को प्रभावित नहीं करने की शर्त भी रखी है। ईडी और सीबीआई के आबकारी नीति मामले में जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन ने सिसोदिया को बेल दी है।

जमानत का आधार SC ने क्या बताया?

  1. SC ने निर्णय दिया कि सजा के तौर पर जमानत देने से इनकार नहीं किया जा सकता है।
  2. निचली अदालतों को एहसास हो गया है कि जमानत नियम है और जेल अपवाद।
  3. जजों ने माना केस की समय पर सुनवाई पूरी होने की कोई संभावना नहीं है।
  4. कोर्ट ने निर्णय दिया कि सिसोदिया को विस्तृत दस्तावेजों की जांच करने का अधिकार है।

सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत को बताया कि ट्रायल कोर्ट को छह से आठ महीने का समय मिला था। हाईकोर्ट और ट्रायल कोर्ट को जमानत एक नियम है और जेल एक अपवाद है। SC ने निर्णय दिया कि बिना ट्रायल के किसी को जेल में रखकर सजा नहीं दी जा सकती।

4 शर्तों के साथ सिसोदिया को न्याय

सिसोदिया को चार शर्तों के साथ जमानत देते हुए न्यायालय ने कहा कि अपीलकर्ता को अपना पासपोर्ट सरेंडर करना होगा, सोमवार को जांच अधिकारी को सूचित करना होगा और गवाहों को प्रभावित करने की कोशिश नहीं करेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मनीष सिसोदिया को जल्द सुनवाई का अधिकार नहीं है क्योंकि वह 17 महीने से हिरासत में हैं और अभी तक केस की सुनवाई शुरू नहीं हुई है।

ईडी और सीबीआई ने दलील दी कि सिसोदिया को जमानत के लिए ट्रायल कोर्ट जाना चाहिए था, लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज करते हुए कहा कि अगर उन्हें फिर से ट्रायल कोर्ट और फिर हाईकोर्ट भेजा जाता है, तो यह उनके लिए “सांप-सीढ़ी” खेलने जैसा होगा। पीठ ने निर्णय दिया कि किसी व्यक्ति को अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता को खोने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।

‘‘हिरासत में रखना मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।’

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने कहा कि चार सौ से अधिक गवाहों और हजारों दस्तावेजों को देखते हुए मुकदमा निकट भविष्य में पूरा नहीं होगा। ऐसे में सिसोदिया को गिरफ्तार करना व्यक्तिगत स्वतंत्रता का गंभीर उल्लंघन होगा।

कोर्ट ने सिसोदिया के सामाजिक जीवन का उल्लेख करते हुए कहा कि उनके भागने का कोई जोखिम नहीं है। साथ ही, मामले में ज्यादातर एविडेंस जांच एजेंसी पहले से ही जुटा चुकी हैं, इसलिए कोई छेड़छाड़ नहीं होगी। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने न्यायालय से अपील की कि अरविंद केजरीवाल मामले में लगाए गए शर्तों की तरह कुछ शर्तें लगाई जाएं, जैसे सिसोदिया को दिल्ली सचिवालय या मुख्यमंत्री कार्यालय में नहीं जाना। कोर्ट ने इस अनुरोध को अस्वीकार कर दिया।

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