दिल्ली

चुनावी बॉन्ड के खिलाफ दलील…. यह आम जनता के सूचना अधिकार का उल्लंघन है

चुनावी बॉन्ड के खिलाफ दलील

दिल्ली: याची के वकील प्रशांत भूषण ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में चुनावी बॉन्ड के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि इसमें पारदर्शिता नहीं है। लोगों का जानने का अधिकार इससे हनन हो रहा है। सिर्फ सरकार जानती है कि किस पार्टी को चंदा दिया गया है। चुनाव आयोग भी नहीं जानता। लोगों को इसका पता लगाने का मौलिक अधिकार है। यह अनुच्छेद-19 (1)(ए) के तहत अधिकार है।

चुनावी बॉन्ड के खिलाफ दलील
प्रशांत भूषण ने फाइनांस एक्ट के तहत FCRA में बदलाव करते हुए चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच के सामने दलील दी। इससे पहले विदेशी चंदा पर रोक थी लेकिन बदलाव के बाद उसे मंजूरी मिल गई। भारत में रजिस्टर्ड विदेशी कंपनी की सब्सिडियरी कंपनी से डोनेशन की इजाजत भी दे दी गई। चुनावी इनकम टैक्स भी छूट दिया गया था। डोनर और डोनेशन लेने वाला, दोनों को छूट मिली है। कॉरपोरेट अनुदान पर कोई सीमा नहीं है। कितना चंदा दिया, यही बताना है, किसे दिया, यह बताना जरूरी नहीं है। यह निर्णय चुनाव से पहले लिया जाना चाहिए।

चुनावी बॉन्ड के खिलाफ दलील

SC ने कहा कि दूसरी पार्टी भी डोनर से पता चलेगा।

चीफ जस्टिस ने कहा कि यह अवधारणा है कि दूसरी पार्टी भी डोनर का नाम जानेगी। यदि कोई डोनर किसी राज्य में व्यवसाय चलाता है, तो उसने किस पार्टी को डोनेशन दिया है, इसकी जानकारी प्रतिद्वंद्वी पार्टी को भी मिलेगी। इस पर प्रशांत भूषण ने कहा कि लोगों को सूचना देने का अधिकार उल्लंघन हो रहा है।

केंद्र की रूलिंग पार्टी को 50 प्रतिशत से अधिक अनुदान

कोर्ट में प्रशांत भूषण ने कहा कि केंद्र की रूलिंग पार्टी को पचास प्रतिशत से अधिक अनुदान मिला है। राज्य की रूलिंग पार्टी भी अधिक धन प्राप्त कर रही है। पांच वर्ष की रिपोर्ट बताती है कि BJP को 5271 करोड़ रुपये, कांग्रेस को 919 करोड़ रुपये, TMC को 767 करोड़ रुपये और BJD को 622 करोड़ रुपये मिले हैं। कई कंपनियां ने डोनेशन दिया और माइनिंग का ठेका लिया। उस समय कपिल सिब्बल ने कहा कि राजनीतिक पार्टी को बॉन्ड से प्राप्त डोनेशन का पैसा कहां लगाया जाएगा पता नहीं है।

चुनावी बॉन्ड के खिलाफ दलील
सुप्रीम कोर्ट ने मांग की कि इलेक्टोरल बॉन्ड की पूरी जानकारी सार्वजनिक हो, जो घुसखोरी का टूल है!

फैसले चुनाव की दिशा निर्धारित करेंगे?

इलेक्टोरल बॉन्ड शुरू से ही चर्चा में है। 29 जनवरी 2018 को केंद्र ने इसे लागू किया था। तर्क था कि इसके जरिए डोनेशन से चुनावी फंडिंग व्यवस्था में सुधार होगा। लेकिन अब इस योजना को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है, जिसमें कई कमियां बताई गई हैं। असोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म ने कहा कि कंपनियों ने इस बॉन्ड का बहुत उपयोग किया है। ये लोग नीतिगत निर्णय प्रभावित कर सकते हैं। अदालत ने चुनाव आयोग को बताया कि इलेक्टोरल बॉन्ड से राजनीतिक पार्टियों की धनराशि की पारदर्शिता प्रभावित होगी।

हालाँकि, यह अब सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक बेंच द्वारा परीक्षण किया जा रहा है और आम चुनाव से पहले इस पर सुनवाई पूरी होने के बाद निर्णय आने की उम्मीद है। जो भी फैसला होगा वह आने वाले दिनों में चुनावी फंडिंग की दिशा और दशा तय करने में अहम होगा।

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