कुंभ के बिना आप कर सकते हैं कल्पवास, कल्पवास के 21 नियम क्या हैं?
शास्त्रों में कल्पवास का अद्भुत लाभ बताया गया है, हालांकि यह एक कठोर साधना है। हम सामान्यतः कह सकते हैं कि “कल्पवास” मोक्ष, पुण्य और आध्यात्मिक विकास का साधन है।
महाकुंभ आस्था और धर्म का अनूठा मिश्रण है। महाकुंभ के दौरान साधु-संत, संन्यासी, भक्त और श्रद्धालु त्रिवेणी संगम पर आस्था की डुबकी लगाते हैं। साथ ही, बहुत से लोग इस समय कल्पवास कर रहे हैं। कुंभ में कल्पवास का महत्व माना जाता है। लेकिन कुंभ के अलावा क्या कल्पवास किया जा सकती है? जानते हैं।
कल्पवास क्या है?
मनुष्य के आध्यात्मिक विकास का एक साधन कल्पवास है। कल्पवास पुण्य प्राप्त करने का साधन है।महाभारत के अनुसार कल्पवास 100 साल तक बिना अन्य ग्रहण किए तपस्या करने जैसा पुण्य फल देता है। निष्ठापूर्वक कल्पवास करने से व्यक्ति को चाहे गए परिणाम मिलते हैं और जन्मजात बंधनों से छुटकारा मिलता है। कल्पवास के दौरान नियमित रूप से सूर्य, शिव और देवी के मंत्रों का जाप करना चाहिए। कल्पवास के दौरान भागवत गीता, रामायण, भजन कीर्तन, साधना और सत्संग करना चाहिए। साथ ही, कल्पवास के दौरान गुस्सा, लालच, अहंकार और हिंसा जैसे भावनाओं से दूर रहना चाहिए।
कौन कल्पवास कर सकता है?
कल्पवास करने के लिए कोई उम्र की आवश्यकता नहीं होती। कल्पवास के नियमों का पालन किसी भी उम्र का व्यक्ति कर सकता है। लेकिन कल्पवास, विशेष रूप से जो लोग सांसारिक मोह माया से छुटकारा पाकर अपने कर्तव्यों को पूरा कर चुके हैं, उनके लिए उपयुक्त माना जाता है। इसका कारण यह है कि जिम्मेदारियों में फंसा व्यक्ति अपने आत्म पर नियंत्रण नहीं रख पाता, जबकि कल्पवास शरीर और अंतःकरण दोनों का कायाकल्प करने का माध्यम है।
क्या कुंभ के अलावा कल्पवास कर सकते हैं?
आध्यात्मिक शुद्धि और मोक्ष के लिए कल्पवास किया जाता है। इसलिए कुंभ से बाहर भी इसे किया जा सकता है। लेकिन कुंभ में कल्पवास करने का महत्व कई गुणा बढ़ जाता है। महाभारत में कहा गया है कि माघ में कल्पवास करना उतना ही पुण्य है जितना सौ वर्षों तक खाने के बिना तपस्या करना। कल्पवास के नियमों का पालन करने के लिए आप अपनी दिनचर्या से छुट्टी ले सकते हैं। इससे आप मानसिक और शारीरिक रूप से ताजगी और ऊर्जा मिलेगी। 3 दिन, 7 दिन, 15 दिन, 30 दिन, 45 दिन, तीन महीने, छह महीने, छह साल, बारह साल या पूरे जीवन में भी कल्पवास कर सकते हैं।
कल्पवास के 21 नियम हैं
कल्पवास के 21 नियमों को पद्म पुराण में महर्षि दत्तात्रेय ने बताया है। कल्पवास करने वालों को इन नियमों का पालन करना अनिवार्य है।
- सत्य वचन: कल्पवास के दौरान सत्य बोलना
- अहिंसा: किसी भी तरह की हिंसा से दूर रहना।
- इंद्रियों पर नियंत्रण: इंद्रियों को नियंत्रित रखना
- प्राणियों के प्रति दया भाव: पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीवों के प्रति दयालु होना।
- ब्रह्मचर्य : योग्य जीवन और पूरी तरह से ब्रह्मचर्य का पालन करना
- व्यसनों का त्याग: सिगरेट और शराब जैसे नशीले पदार्थों को पूरी तरह से छोड़ना
- ब्रह्म मुहूर्त में जागना: सुबह सूर्योदय से पूर्व उठ जाना
- स्नान: नियमित तीन बार पवित्र नदी में स्नान करना
- त्रिकाल संध्या ध्यान: सुबह, दोपहर और शाम में तीन बार प्रार्थना करना और ध्यान करना
- पिण्डदान: पूर्वजों की याद में पिंडदान और तर्पण करना
- अंतर्मुखी जप: मन और आत्मा से ध्यान करना और मंत्रजाप करना
- सत्संग: साधु-संतों के आसपास रहना।
- संकल्पित क्षेत्र से बाहर नहीं जाना
- किसी की भी आलोचना नहीं करना
- साधुओं की सेवा करना
- दान: अन्न, संपत्ति और कपड़े देना
- जप और मंत्र: नियमित भजन, मंत्र और कीर्तन करके ईश्वर का स्मरण करना
- भोजन: कल्वास के दौरान एक समय ही भोजन करना चाहिए।
- भूमि शयन: सोना यज्ञ आदि में जमीन पर अग्नि का प्रयोग न करना
- देवदर्शन: भगवान की सेवा करना
कल्पवास के इन 21 नियमों में ब्रह्मचर्य, व्रत, उपवास, देव पूजन, सत्संग और दान सबसे महत्वपूर्ण हैं।
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