धर्मउत्तराखण्ड

इस गुफा में भगवान राम ने ब्रह्महत्या के पाप से छुटकारा पाने के लिए तपस्या की, द्वार पर बजरंगबली खड़े थे।

उत्तराखंड को देवभूमि भी कहा जाता है। उत्तराखण्ड में अनगिनत देवताओं, साधुओं, संतों और ऋषियों ने तपस्या की है। इनमें श्रीराम का नाम भी है। कहा जाता है कि रावण की हत्या के बाद भगवान राम ने ब्रह्महत्या के पाप से छुटकारा पाने के लिए बारह वर्षों तक उत्तराखंड की भूमि पर एक प्राकृतिक गुफा में घोर तपस्या की।

ऋषिकेश, उत्तराखंड के चार धामों के प्रवेश द्वार, वगंगा तट पर कई देवताओं, साधुओं, संतों और ऋषिमुनियों ने तपस्या की है। इनमें श्रीराम का नाम भी है। बताया जाता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने त्रेतायुग में रावण के समूचे कुल को युद्ध में मार डाला था। इसके बाद श्रीराम ने ब्रह्महत्या की पीड़ा से परेशान होकर अपने कुल गुरु वशिष्ठ से सलाह मांगी। श्रीराम को गुरु वशिष्ठ ने मां गंगा के तट पर तपस्या करने की सलाह दी।

तब श्रीराम हिमालय की ओर चले गए और देवभूमि उत्तराखंड पर पहुंचे। यहां, ऋषिकेश के निकट ब्रह्मपुरी नामक स्थान पर गंगा के तट पर बनी एक प्राकृतिक गुफा में विश्राम करने लगे। यहां समस्या यह थी कि गंगा की आवाज के कारण वह ध्यान नहीं लगा पा रहे थे। जब उन्होंने मां गंगा का आह्वान किया, तो वह साक्षात प्रकट हुई। जब भगवान राम ने मां गंगा से उनकी शोरगुल से ध्यान न लगा पाने की बात कही, तो वह बोली कि अब वह ब्रह्मपुरी क्षेत्र में शांत होकर बहेंगी।

श्रीराम तपस्थली ब्रह्मपुरी के संचालक श्रीमहंत दयाराम दास ने बताया कि श्रीराम ने बारह वर्षों तक गंगा तट पर तपस्या की। आज भी यह गुफा मौजूद है। यहां विदेशों से भक्त आते हैं। उन्हें बताया कि श्रीराम की कठोर तपस्या को देखकर सभी देवताओं ने उनकी तपस्या को स्वीकार किया और तपस्या पूरी करने के लिए वापस अयोध्या लौटने की घोषणा की। हनुमान ने श्रीराम की गुफा के बाहर पहरा बनाया ताकि भगवान श्रीराम के तप में कोई बाधा न आए। गुफा के बाहर अभी भी एक बहुत विशाल पत्थर है, जिस पर हनुमान जी बैठकर बैठते थे। आज हनुमान शिला के नाम से इसे पूजा जाता है।

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