Delhi समाचार: पब्लिक टॉइलेट की सुरक्षा भी महत्वपूर्ण है..। दिल्ली हाईकोर्ट ने सुलभ शौचालयों का रखरखाव करने के लिए जारी किए निर्देशों को जारी किया

पब्लिक टॉइलेट की सुरक्षा भी महत्वपूर्ण है
दिल्ली हाई कोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी में पब्लिक टॉइलेट की दुर्दशा को देखते हुए कहा कि जन सुविधाएं उपलब्ध कराना और उनका सही ढंग से संचालन और रखरखाव करना अनिवार्य है। इसके लिए हाई कोर्ट ने एमसीडी और डीडीए सहित संबंधित निकायों को कुछ दिशानिर्देश दिए हैं। चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस संजीव नरूला की बेंच ने कहा कि सभी सिविक एजेंसियां अगली सुनवाई तक जरूरी सबूतों के साथ अनुपालन का हलफनामा दें कि उन निर्देशों पर अमल हो रहा है या नहीं।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जैसे शौचालयों की स्थापना बहुत महत्वपूर्ण है, उनका सफल संचालन और रखरखाव भी बहुत महत्वपूर्ण है। माना कि शिकायतों को रिपोर्ट करने और फीडबैक प्राप्त करने से जन सुविधाओं की स्थिति और उपयोगिता काफी बढ़ सकती है। हाई कोर्ट ने भरोसा जताया कि प्रतिवादी इन मुद्दों पर गंभीरता से विचार करेंगे और उपरोक्त मुद्दों को हल करने के लिए आवश्यक कार्रवाई करेंगे। अब अगली सुनवाई 11 दिसंबर को होगी।
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हाई कोर्ट की सिफारिशें
– प्रतिवादी को प्रत्येक शौचालय के रखरखाव और संचालन के लिए जिम्मेदार एजेंसी या ठेकेदार का नाम और संपर्क नंबर प्रमुखता से प्रदर्शित करना होगा।
– प्रतिवादियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि प्रदर्शित संपर्क नंबर सही और सक्रिय हैं, ताकि लोग किसी भी असुविधा या दिक्कत होने पर तुरंत संबंधित व्यक्ति या संस्था से संपर्क कर सकें।
– शिकायतों पर प्रतिवादियों, उनके ठेकेदारों या एजेंसियों की जिम्मेदारी होगी कि किसी भी मामले को समयबद्ध और कुशल तरीके से हल किया जाए।
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‘जन सेवा वेलफेयर सोसायटी’ की याचिका हाई कोर्ट में विचाराधीन थी। इसमें डीडीए और एनडीएमसी की स्टेटस रिपोर्ट फाइल हो चुकी थीं। पर दिल्ली कंटोनमेंट बोर्ड और एमसीडी ने चार हफ्तों का समय मांगा। संगठन के अध्यक्ष अजय अग्रवाल और वकील योगेश गोयल ने कहा कि अधिकारियों की रिपोर्ट जमीनी हकीकत नहीं बताती। उनका कहना था कि मैंने खुद एक सर्वे किया, जिसमें पब्लिक टॉइलेटों की हालत खराब थी।
उन्हें हाई कोर्ट ने रोहिणी, सेक्टर 8 के पब्लिक टॉइलेट की वर्तमान स्थिति से संबंधित चित्र दिखाए। कोर्ट ने भी उन्हें देखकर माना कि सार्वजनिक शौचालयों की स्थिति में कोई सुधार नहीं है। हाई कोर्ट ने यह भी देखा कि याचिकाकर्ता ने इन सुविधाओं के बारे में शिकायत करने के लिए कोई प्रभावी सिस्टम नहीं है। पब्लिक टॉइलेट में ताला लगे होने के कई उदाहरण हैं, जिससे लोगों को अनावश्यक असुविधाओं का सामना करना पड़ता है।