Harda Explosion: बारूद का गोदाम तलघर में था, जब वह फटा, तो तबाही हुई; तीन मंजिला फैक्टरी का मलबा लोगों पर बम बनकर गिरा।
Harda Explosion: हरदा फैक्टरी में हुए विस्फोट से जमीन हिल गई और पत्थरों की बारिश हुई। इसकी सबसे बड़ी वजह थी गोडाउन की तरह फैक्टरी के तलघर का उपयोग करना। गोडाउन में एक हजार किलो से अधिक बारूद का स्टॉक विस्फोट हुआ। इससे भवन की नींव टूट गई। दीवार और छत का मलबा 400 मीटर तक तेजी से गिरा, जिससे लोग मर गए।
हरदा फैक्टरी में हुए विस्फोट से जमीन हिल गई और पत्थरों की बारिश हुई। इसकी सबसे बड़ी वजह थी गोडाउन की तरह फैक्टरी के तलघर का उपयोग करना। गोडाउन में एक हजार किलो से अधिक बारूद का स्टॉक विस्फोट हुआ। इससे भवन की नींव टूट गई। दीवार और छत का मलबा 400 मीटर तक तेजी से गिरा, जिससे लोग मर गए।
फैक्टरी में आग बुझाने में शामिल फायर ब्रिगेड के कर्मचारियों ने बताया कि पटाखा जमीन पर 15 किलो के विस्फोटक पदार्थ में गोडाउन होना चाहिए। लेकिन नियमों के विपरीत, हरदा की फैक्टरी में तलघर का इस्तेमाल बारुद का स्टॉक रखने के लिए किया जाता था। गोडाउन में खुदाई करने वाले पोकलेन चालक ने बताया कि तलघर की खुदाई में पीली राख थी।
बिल्डिंग में फैक्टरी नहीं चल सकती, फिर भी मिलता है लाइसेंस
जिस फैक्टरी में दुर्घटना हुई थी चार लाइसेंस थे। 2008 विस्फोटक नियम का नियम 126 कहता है कि विस्फोटक सामग्री का गोडाउन सिर्फ जमीन पर हो सकता है। उसे ऊपरी या तल मंजिल पर नहीं रखा जा सकता, लेकिन बारूद को हरदा की फैक्टरी में तलघर में रखा जाता था।
नियम कहता है कि गोडाउन खुले क्षेत्र में निर्धारित दूरी पर बनाया जाना चाहिए। चारों ओर खाली जगह होनी चाहिए, ताकि आग लगने पर दमकलें चारों ओर फैल सकें। लेकिन हरदा फैक्टरी ने कानूनों का पालन नहीं किया। हालाँकि, राजेश अग्रवाल का लाइसेंस हर साल नवीनीकरण होता है। गृह विभाग हर साल जिले के कलेक्टरों और पुलिस अधीक्षकों को पटाखा फैक्टरी और गोडाउनों की जांच के लिए पत्र भेजता था, लेकिन अफसरों का रवैया अग्रवाल की फैक्टरी के प्रति नरम था।