Haryana Assembly Elections: भाजपा, मुसलमानों के गढ़ में लगातार मजबूत हो रही है, लेकिन खाता खोलने की चुनौती बनी हुई है

Haryana Assembly Elections

Haryana Assembly Elections लगातार गरमा रहे हैं। नेताओं की बैठकें और वादे बढ़ते जा रहे हैं जैसे-जैसे मतदान के दिन (पांच अक्टूबर) का अंतराल कम होता जा रहा है। 22 सितंबर को राज्य में 40 बड़ी बैठकें हुईं। वादों की भरमार सिर्फ अपने-अपने पक्ष में ध्रुवीकरण करने के लिए की जाती है। यह भी लगता है कि वादे सिर्फ ध्रुवीकरण के लिए किए जा रहे हैं। वादों की वास्तविकता को समझने के लिए एकमात्र उदाहरण पर्याप्त है। भाजपा और कांग्रेस ने चुनाव के दौरान दो-दो लाख सरकारी नौकरियां देने का वादा किया है। यह प्रतिज्ञा लिखी हुई है। घोषणापत्रों में वर्णित है। लेकिन वास्तव में, दोनों दल दस-दस साल तक शासन करके भी इतनी नौकरियां नहीं दे पाए। भाजपा ने ही बताया कि कांग्रेस ने अपने शासनकाल में 86 हजार लोगों को पक्की सरकारी नौकरी दी, जबकि भाजपा सरकार ने 1.44 लाख युवाओं को पक्की सरकारी नौकरी दी है। यानी, दो दशक में सरकार ने 2.30 लाख नौकरियां बनाई हैं। इसके बावजूद, सरकार ने पांच साल में दो लाख नौकरियां बनाने का वादा किया है।

यह वादा निश्चित रूप से युवा मतदाताओं को अपने पक्ष में ध्रुवीकरण करने के लिए किया गया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि चार साल के बाद सेवा से बाहर होने वाले हरियाणा के अग्नियों को सरकारी नौकरी मिलेगी। असल में हरियाणा की आधी जनसंख्या युवा है। चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, राज्य में 2.03 करोड़ लोग मतदान कर सकते हैं। 95.12 लाख लोग 40 साल से अधिक की उम्र के हैं। यानी 47.73%। इन आंकड़ों में युवाओं की महत्वपूर्ण भूमिका छिपी हुई है।

किसने जातिगत समीकरण बनाया? बीजेपी ने कांग्रेस से अधिक सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों को टिकट दिया है, जबकि कांग्रेस ने बीजेपी से अधिक मुसलमानों को टिकट दिया है। ओबीसी और एससी दोनों को समान टिकट मिले हैं। हिंदुस्तान टाइम्स के एक आंकड़े के अनुसार, भाजपा के 57.8 प्रतिशत उम्मीदवार सामान्य वर्ग से हैं, जबकि कांग्रेस के 54.4 प्रतिशत उम्मीदवार सामान्य वर्ग से हैं। कांग्रेस के 5.6 प्रतिशत मुसलमान उम्मीदवार हैं, जबकि भाजपा के 2.2 प्रतिशत हैं। एससी और ओबीसी नेताओं ने उम्मीदवारी में बराबर भाग लिया है। ओबीसी 21.1 प्रतिशत है और एससी 18.9 प्रतिशत है।

कांग्रेस में बीजेपी से डेढ़ गुना अधिक जाट उम्मीदवार हैं

जाति के आधार पर जाट उम्मीदवार सबसे अधिक (43 प्रतिशत) हैं। जाट नेता दोनों पार्टियों में सबसे अधिक टिकट पाए हैं। बीजेपी के 16% उम्मीदवार जाट हैं, जबकि कांग्रेस के 27%। चर्मकार जाति के उम्मीदवार दूसरे स्थान पर हैं। इनकी हिस्सेदारी कुल उम्मीदवार में 20 प्रतिशत है। कांग्रेस ने बारह प्रतिशत और बीजेपी ने आठ प्रतिशत चर्मकार नेताओं को चुना है।

कांग्रेस में चर्मकार दूसरे स्थान पर हैं, भाजपा में ब्राह्मण उम्मीदवार

कांग्रेस में जाटों के बाद चर्मकार दूसरे स्थान पर हैं, जबकि भाजपा में ब्राह्मण दूसरे स्थान पर हैं। भाजपा के 11 प्रतिशत प्रत्याशी ब्राह्मण हैं। कांग्रेस ने केवल पांच प्रतिशत ब्राह्मण नेताओं को टिकट दिया है। कांग्रेस ने छह प्रतिशत पंजाबियों को टिकट दिया है, जबकि भाजपा के नौ प्रतिशत उम्मीदवार पंजाबी  हैं। कांग्रेस में छह प्रतिशत यादव उम्मीदवार भी हैं। भाजपा में 7% यादव हैं। भाजपा ने चर्मकारों को आठ प्रतिशत (वैश् य के बराबर) टिकट दिया है। कांग्रेस में वैश्‍य उम्मीदवार केवल दो प्रतिशत हैं। भाजपा ने गुर्जरों को छह प्रतिशत टिकट दिया है, जबकि कांग्रेस के सात प्रतिशत उम्मीदवार गुर्जर हैं।

मुस्लिमों की रक्षा

भाजपा के दो उम्मीदवार हैं। 25 साल में भाजपा ने सिर्फ सात मुसलमानों को मार डाला है। इनमें से कोई भी विजेता नहीं हुआ। लेकिन, इन लोगों ने भाजपा को अपने क्षेत्र में हिंदुओं से अधिक वोट दिए। दक्षिणी हरियाणा के मेवात में भाजपा का वोट लगातार बढ़ रहा है। इस क्षेत्र में बहुत सारे लोग रहते हैं। भाजपा का वोट बढ़ना इसलिए उसके लिए अच्छा संकेत है। शायद यही कारण है कि पार्टी ने इस बार मेवात के नूंह जिले में दो मुसलमान उम्मीदवार उतारे हैं। फीरोजपुर झीरका से नसीम अहमद और पुनहना से ऐजाज खान हैं। फीरोजपुर झीरका में 80% और पुनहना में 88% मुसलमान मतदाता हैं।

इस इलाके में बीजेपी का वोट बढ़ रहा है, लेकिन यह भी लगता है कि मुसलमान उम्मीदवार बीजेपी से होने के चलते ही इस इलाके से चले जाएंगे। फीरोजपुर झीरका में, 2009 में भाजपा ने हिंदू उम्मीदवार को 5.29 प्रतिशत वोट मिले। 2014 में मुसलमान को उतारा गया, तो वोट शेयर 12.09 प्रतिशत हो गया। 2014 में इंडियन नेशनल लोक दल (आईएनएलडी) के उम्मीदवारों में से एक नसीम अहमद ने 29.47 प्रतिशत वोटों से जीत हासिल की। 2019 में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले नसीम अहमद भी करीब तीन फीसदी अधिक वोटों से हार गए। कांग्रेस के मम् मन खान करीब 58% वोटों से विजयी रहे।

2009 में बीजेपी का वोट प्रतिशत सिर्फ 1.03 था, लेकिन 2014 में यह 21.67 हो गया। उसने इन दोनों चुनावों में सही उम्मीदवारों को चुना। लेकिन हिंदू उम्मीदवारों ने 2019 में वोट प्रतिशत घटाकर 17.65 रह गया। शायद यही कारण है कि पार्टी ने इस बार मुस्लिम उम्मीदवार को इस स्थान से चुना है। पार्टी ने 70 फीसदी मुसलमान मतदाताओं वाली नूंह विधानसभा सीट पर भी काफी तरक्की की है। 1991 में भाजपा का वोट शेयर 10% से भी कम था, लेकिन 2019 में लगभग 40% हो गया। पांच अक्टूबर को ही पता चलेगा कि इस बार क्या होगा।

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