Joram Review
Joram Review: हजरात..।इतना बम मारेंगे कि पूरा इलाका धुआं हो जाएगा। फिल्म जोरम में एक मनोज वाजपेयी हैं जो बम मारते हैं, और दूसरा मनोज वाजपेयी हैं जो डर से कांपकर कहते हैं कि सरकार गोली नहीं चलाइएगा, छोटी बच्ची है। ये व्यक्ति सिर्फ एक एक्टर नहीं है; वह एक पूरी एक्टिंग मास्टरक्लास है और इतनी बड़ी रेंज है। जोरम देखते हुए बार-बार यही लगता था, लेकिन मुझे कोई दूसरा नाम नहीं आया।
कहानी
Joram Review: ये एक आदिवासी दसरू की कहानी है जो एक नक्सली गैंग से भागकर मुंबई में अपनी पत्नी वानो और बेटी जोरम के साथ रहता है। पति-पत्नी काम करते हैं और खुश रहने की कोशिश करते हैं, लेकिन फिर हमला होता है।वानो मर जाता है और दसरू छोटी सी जोरम लेकर भागता है। गोलियों से बचने के लिए, झारखंड की फूलो कर्मा से बचने के लिए, जिसके बेटे की मौत के लिए दसरू जिम्मेदार था। आज, कभी गोली चलाने वाला दसरू गोली से भाग रहा है। कहानी छोटी लग सकती है, लेकिन इसे दिखाने का तरीका आपको दहला देता है, इसलिए सिनेमाघर जाना चाहिए।
कैसी है फिल्म
ये फिल्म बेहतरीन है।फिल्म कुछ कहती है। मानव ने पर्यावरण को जो नुकसान पहुँचाया है, उसकी बात करती है। ये नक्सलवाद भी उठाता है। इसमें झारखंड की राजनीति भी शामिल है। भी अच्छी तरह से स्थानीय परिस्थितियों को समझाती है।ये फिल्म आपको बेहोश कर देगी।जब बाहर से लोग दरवाजा तोड़ रहे हैं और दसरू ट्रेन के डिब्बे में जोरम लेकर छिपा है, तो आप भी दसरू के चेहरे पर दर्द के आंसू देखते हैं। जब दसरू बेटी को पीठ पर बांधकर भागता है, कैमरा बिना किसी सिनैमैटिक एंगल का ध्यान किए हुए उसके पीछे चलता हैतो आप भी चलते हैं और दसरू को बचाना चाहते हैं। फिल्म का एक दृश्य आपको कुछ बताता है। ना कोई बड़े सेट ना कोई महंगे कॉस्ट्यूम लेकिन फिल्म दिल में उतरती है. ऐसी फिल्में फिल्म फेस्टिवलों पर भी प्रशंसा पाती हैं अवॉर्ड तो जीत लेती हैं लेकिन इनका असली अवॉर्ड है इन्हें थिएटर में जाकर देखना और अगर सिनेमा से प्यार है तो जरूर देखिएगा.
एक्टिंग
Joram Review: मनोज वाजपेयी को देखकर एक बार फिर ये बकवास क्या है। ये कैसे हर किरदार में इतना घुस जाता है कि वह अपने आप को एक किरदार बना लेता है। मनोज ने दसरू का दर्द व्यक्त किया है। जानकारों ने शायद उनके चेहरे और आंखों पर जो दिखता है उसे एक्टिंग कहा है। हर फिल्म में मनोज अपनी खींची लाइन को बड़ा करते हैं।यहाँ भी किया गया है। मनोज बहुत बार गोली चला चुका है और दहला चुका है, लेकिन इस बार वह गोली से डर गया है। दहले हुए लगते हैं। ये निश्चित रूप से उनके सबसे अच्छे किरदारों में से एक है, और इसे देखना होगा। मनोज की पत्नी की भूमिका किरदार छोटा है लेकिन प्रभावशाली है।जीशान अयूब पुलिसवाले हैं और शानदार काम करते हैं। ये सिंघम या दबंग दोनों से कम नहीं है। ये दिल की बात है। जज्बातों को पता है कि बंदूक दिल और दिमाग दोनों को मारती है।ये किरदार भी दिखाया है कि फिल्मी पुलिसवाले सिर्फ धूम-धड़ाम वाले संगीत पर एंट्री मारकर गोलियां चलाते हैं। जीशान ने एक बार फिर दिखाया है कि वह फिल्म इंडस्ट्री में बेहतरीन अभिनेता हैं। फूलो कर्मा के किरदार में स्मिता तांबे जबरदस्त हैं और खलनायकी में एक अलग ही दृष्टिकोण लाती हैं।
डायरेक्शन
फिल्म को देवाशीष मखीजा ने लिखा और निर्देशित किया है। इस फिल्म के लिए मनोज वाजपेयी को जितनी तारीफ मिलनी चाहिए उतनी ही देवाशीष को मिलनी चाहिए। देवाशीष ने एक अच्छे कलाकार से कितना अच्छा काम करवाया जा सकता है। उनकी फिल्मी पकड़ अविश्वसनीय है। यह स्पष्ट है कि उन्होंने हवा में कहानी नहीं लिखी, बल्कि पूरी खोज की और फिल्म बनाई। देवाशीष ने दिखाया कि अच्छी कहानियों और निर्देशकों की कमी नहीं है, इसलिए उम्मीद है कि उनका काम सराहा जाएगा और उन्हें आगे भी अच्छे काम मिलेंगे। हम सिर्फ मौका चाहिए।
कुल मिलाकर, सिनेमा से प्यार है तो फिल्म देखना चाहिए। शायद बहुत से लोग नहीं जानते कि ऐसी कोई फिल्म आ रही है। जब आप ये रिव्यू पढ़ते हैं, तो उन्हें बताइएगा क्योंकि ऐसी अच्छी फिल्में सिर्फ लाइब्रेरी में नहीं रहनी चाहिए, बल्कि दर्शकों तक भी जानी चाहिए।