धर्म

Mahakumbh Kalpwas 2025: महाकुंभ में कल्पवास के नियम, महत्व और लाभ जानें।

Mahakumbh Kalpwas 2025: महाकुंभ और कल्पवास एक दूसरे से बहुत जुड़े हैं। कुंभ में कल्पवास करने वाले व्यक्ति को श्रीहरि की कृपा मिली। लेकिन भक्तों को कल्पवास में नियम का निष्ठापूर्वक पालन करना होता है।

पौष पूर्णिमा, सोमवार, 13 जनवरी 2025 से महाकुंभ शुरू होगा। पवित्र त्रिवेणी संगम पर आस्था की डुबकी लगाने के लिए विश्व भर से साधु-संत और श्रद्धालु महाकुंभ में एकत्रित होते हैं।

महाकुंभ के दौरान कई लोग कल्पवास के नियमों का बहुत से लोग पालन करते हैं। यह नियम पूरा करने वालों को भगवान विष्णु (Lord Vishnu) की कृपा मिलेगी। वैसे, कल्पवास का नियम कभी भी लागू हो सकता है। लेकिन शास्त्रों के अनुसार कुंभ (Kumbh), महाकुंभ और माघ मास में कल्पवास का बहुत महत्व है। कल्पवास को आत्मिक शुद्धि और विकास का सर्वोच्च साधन माना जाता है। कल्पवास का महत्व, नियम और लाभ जानें-

कल्पवास का अर्थ क्या है?

आप आध्यात्मिक विकास का एक साधन भी कल्पवास कह सकते हैं। ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास के अनुसार, कल्पवास का अर्थ है एक महीने तक संगम तट पर रहकर वेद, ध्यान और पूजा करना। भक्त को इस दौरान कठिन तपस्या और भगवत साधना करनी होती है। कल्पवास का समय पूरी तरह से भगवान को समर्पित होता है। लेकिन कुंभ में कल्पवास करने का महत्व कई गुणा बढ़ जाता है।

महाकुंभ को मनाने के लिए इस वर्ष पौष महीने के ग्यारहवें दिन से माघ महीने के बारहवें दिन तक कल्पवास के नियमों का पालन करना होगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सूर्य देव को धनु राशि से मकर राशि की ओर प्रस्थान करते समय एक महीने के कल्पवास का पुण्य फल मिलता है, जो कल्प में ब्रह्म देव के एक दिन के समान है। यही कारण है कि मकर संक्रांति (Makar Sankranti, 2025) के दिन से बहुत से लोग कल्पवास की शुरुआत करते हैं। माघ महीने भर संगम पर रहकर तप, साधना, पूजन और अनुष्ठान करना कल्पवास कहलाता है।

2025 का कल्पवास कब शुरू होगा?

2025 में महाकुंभ और कल्पवास दोनों होंगे। 13 जनवरी को पौष पूर्णिमा के स्नान के साथ महाकुंभ मेले की भव्य शुरुआत होगी, जिससे कल्पवास भी शुरू होगा। कल्पवास एक महीने चलता है। इस समय साधक संगम तट पर रहते हुए कल्पवास के नियमों का पूरी तरह से पालन करते हैं और ज्ञान, सत्संग और साधु महात्माओं की संगति का लाभ उठाते हैं।

कल्वास के नियम क्या हैं?

कल्पवास के नियम बहुत कठोर हैं। कल्पवास करने वाले को श्वेत या पीला कपड़ा पहनना चाहिए। कल्पवास का सबसे छोटा समय एक रात होती है। इसके अलावा, यह तीन रात, तीन महीने, छह महीने, छह साल, बारह साल या जीवन भर भी चल सकता है। महर्षि दत्तात्रेय ने पद्म पुराण में कल्पवास के 21 नियम बताए हैं। इन पूरे 21 नियमों का पालन करना 45 दिनों तक कल्पवास करने वालों को अनिवार्य है। ये 21 नियम हैं:

सत्यवचन, अहिंसा, इंद्रियों पर नियंत्रण रखना, सभी जीवों पर दया भाव रखना, ब्रह्मचर्य का पालन करना, व्यसनों से दूर रहना, ब्रह्म मुहूर्त में जागना, तीन बार नियमित रूप से पवित्र नदी में स्नान करना, त्रिकाल संध्या का ध्यान करना, पिंडदान करना, दान करना, अंतर्मुखी जप करना, सत्संग करना, अपने संकल्पित क्षेत्र से बाहर साधू-सन्यासियों की सेवा करना, जप और कीर्तन करना, एक बार खाना खाना, जमीन पर सोना, अग्नि नहीं खाना, देव को पूजना कल्पवास के इन 21 नियमों में ब्रह्मचर्य, व्रत, उपवास, देव पूजन, सत्संग और दान सबसे महत्वपूर्ण हैं।

कल्पवास के लाभ

  • निष्ठापूर्वक और श्रद्धापूर्वक कल्पवास के नियमों का पालन करने वाले व्यक्ति को चाहे गए फल मिलते हैं और जीवन भर के बंधनों से छुटकारा मिलता है।
  • महाभारत में कहा गया है कि माघ महीने में कल्पवास करना उतना ही पुण्य है जितना एक शताब्दी तक बिना कुछ खाए तपस्या करना।
  • भगवान विष्णु (Lord Vishnu) की कृपा से कल्पवास के नियमों का पालन करने वाले व्यक्ति को जीवन भर सुख-समृद्धि, सौभाग्य और सकारात्मकता मिलती है।

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