Tulsi Chalisa: तुलसी चालीसा: श्री तुलसी माता, धन्य धन्य, महिमा अगम सदा गाता

Tulsi Chalisa

॥ चौपाई ॥
जय जय तुलसी भगवती सत्यवती सुखदानि ।
नमो नमो हरि प्रेयसी श्री वृन्दा गुण खानि ।।
श्री हरि शीश बिराजिनी, देहु अमर वर अम्बा जनहित हे वृन्दावनी अब न करहु विलम्ब।।

धन्य धन्य श्री तुलसी माता।
महिमा अगम सदा श्रुति गाता।।

हरि के प्राणहू से तुम प्यारी।
हरिहिं हेतु कीन्हों तप भारी ॥

जब प्रसन्न है दर्शन दीन्ह्यो।
तब कर जोरि विनय अस कीन्ह्यो।

हे भगवन्त कन्त मम होहू।
दीन जानि जनि छांड़हु छोहू।
सुनि लख्मी तुलसी की बानी।
दीन्हों श्राम कध पर आनी॥

अस अयोग्य वर मांगन हारी।
होहु विटप तुम जड़ तनु धारी ॥

सुनि तुलसहिं श्राप्यो तेहिं ठामा ।
करहु वास तुहुँ नीचन धामा ॥

दियो वचन हरि तब तत्काला।
सुनहु सुमुखि जनिहोहु बिहाला ।।

समय पाई व्है रों पति तोरा।
पुजिहौं आस वचन सत मोरा ।।

तब गोकुल महं गोप सुदामा।
तासु भई तुलसी तू बामा ॥

कृष्ण रास लीला के माहीं।
राधे शक्यो प्रेम लखि नाहीं॥

दियो श्राप तुलसिंह तत्काला।
नर लोकहिं तुम जन्महु बाला ।।

यो गोप वह दानव राजा।
शंख चूड़ नामक शिर ताजा॥

तुलसी भई तासु की नारी।
परम सती गुण रूप अगारी ॥

अस द्वै कल्प गीत जब गयऊ।
कल्प तृतीय जन्म तब भयऊ॥

वृन्दा नाम भयो तुलसी को।
असुर जलन्धर नाम पति को॥

करि अति द्वन्द्व अतुल बलधामा।
लीन्हा शंकर से संग्रामा ॥

जब निज सैन्य सहित शिव हारे।
मरहि न तब हर हिरहिं पुकारे॥

पतिव्रता वृन्दा थी नारी।
कोउ न सके पतिहिं संहारी॥

तब जलन्धरहि भेष बनाई।
वृन्दा ढिंग हरि पहुच्यो जाई ॥

शिव हितलहि करि कपट प्रसंगा।
कियो सतीत्व धर्म तेहि भंगा।
भयो जलन्धर कर सुनि संहारा।
उर शोक अपारा।।

तिहिं क्षण दियो कपट हरि टारी।
लखि वृन्दा दुख गिरा उचारी ॥
जलन्धरहिं जस हत्यो अभीता।
सोई रावण तस हरिही सीता।।

अस प्रस्तर सम हृदय तुम्हारा।
धर्म खण्डि मम पतिहिं संहारा॥

यहि कारण लहि श्राप हमारा।
होवे तनु पाषाण तुम्हारा।।
सुनि हरि तुरतहिं वचन उचारे।
दियो श्राप तुम बिना विचारे ।।

लख्यो न निज करतूति पती को।
छलन चह्यो जब पारवती को ॥

जड़मति तुहुँ अस हो जड़रूपा।
जगमहं तुलसी विटप अनूपा ॥

धग्व रूप हम शालिगरामा।
दी गण्डकी बीच ललामा ।।

जो तुलसीदल हमहिं चढ़ इहैं।
सब सुख भोगि परम पद पइ हैं।
बिनु तुलसी हरि जलत शरीरा। अतिशय उठत शीश उर पीरा।
जो तुलसी दल हरि शिर धारत।
प्तो सहस्त्र घट अमृत डारत।।
तुलसी हरि मन रंजनि हारी। रोग दोष दुख भंजनि हारी ॥

प्रेम सहित हरि भजन निरन्तर।
तुलसी राधा में नहिं अन्तर॥
व्यंजन हो छप्पनहु प्रकारा।
बिनु तुलसीदल हरिहिं प्यारा ॥

सकल तीर्थ तुलसी तरु छाहीं।
लहत मुक्ति जन संशय नांहीं।।
कवि सुन्दर इक हरि गुण गावत।
तुलसिहिं निकट सहसगुण पावत।।

बसत निकट दुर्बासा धामा।
जो प्रयास ते पूर्व ललामा ॥
पाठ करहिं जो नित नर नारी।
होहिं सखी भाषहिं त्रिपुरारी॥

।।दोहा।।

Related Articles

Back to top button
करी पत्ते के 10 स्वास्थ्य लाभ बिग बॉस ओटीटी 3 प्रतियोगियों की सूची जून-जुलाई 2024 में रिलीज़ होगी 10 सडेजडेजर्वश्रेष्ठ वेब सीरीज़ भारत का सबसे बड़ा चाय उत्पादक [2024] मेथी के बीज के 7 फायदे गर्मियों में स्वस्थ रहने के लिए अपनाएं ये 5 ड्रिंक्स S नाम वाले लोगों का स्वभाव Holi 2024 Date Upcoming Indian movies 2024 Best Gaming Zones in Delhi NCR
करी पत्ते के 10 स्वास्थ्य लाभ बिग बॉस ओटीटी 3 प्रतियोगियों की सूची जून-जुलाई 2024 में रिलीज़ होगी 10 सडेजडेजर्वश्रेष्ठ वेब सीरीज़ भारत का सबसे बड़ा चाय उत्पादक [2024] मेथी के बीज के 7 फायदे
करी पत्ते के 10 स्वास्थ्य लाभ बिग बॉस ओटीटी 3 प्रतियोगियों की सूची जून-जुलाई 2024 में रिलीज़ होगी 10 सडेजडेजर्वश्रेष्ठ वेब सीरीज़ भारत का सबसे बड़ा चाय उत्पादक [2024] मेथी के बीज के 7 फायदे गर्मियों में स्वस्थ रहने के लिए अपनाएं ये 5 ड्रिंक्स S नाम वाले लोगों का स्वभाव Holi 2024 Date Upcoming Indian movies 2024 Best Gaming Zones in Delhi NCR