Sheetala Ashtami 2025: शीतला सप्तमी और अष्टमी का मुहूर्त, पूरी विधि और भोग की पूरी जानकारी

Sheetala Ashtami 2025: हिन्दू धर्म में बसौड़ा एक महत्वपूर्ण त्योहार है। शीतला अष्टमी को बसौड़ा पूजा भी कहते हैं। यहाँ शीतला पूजा की पूरी जानकारी मिलेगी।

Sheetala Ashtami 2025: होली के बाद सातवें और आठवें दिन माता शीतला की पूजा की जाती है। यह शीतला सप्तमी या शीतलाष्टमी है। स्कंद पुराण में शीतला माता का उल्लेख है। पौराणिक मान्यता है कि इनकी पूजा और व्रत करने से चेचक और अन्य बीमारियां नहीं होती।

शीतला की अष्टमी-सप्तमी कब है?

चैत्र महीने में शीतला माता के लिए शीतला सप्तमी (21 मार्च) और अष्टमी (22 मार्च) दो व्रत-उपवास हैं। यह व्रत ठंडा खाना खाने का रिवाज है। यह व्रत मानने वाले लोग एक दिन पहले बनाया हुआ भोजन ही खाते हैं। 20 और 21 मार्च को रांधा पुआ का आयोजन किया जाएगा। जहां शीतला सप्तमी को मनाया जाएगा 20 मार्च को वहां रांधा पुआ होगा। जहां शीतला अष्टमी को मनाया जाएगा 21 मार्च को वहां रांधा पुआ होगा।

क्यों खाते हैं ठंडा भोजन?

सप्तमी और अष्टमी के दिन कहीं-कहीं ठंडा भोजन दिया जाता है। वास्तव में, ये शीत ऋतु का अंत और ग्रीष्म ऋतु का प्रारंभ होने का समय है। इस समय मौसमी बीमारियां होने का खतरा बढ़ जाता है। माना जाता है कि शीतला सप्तमी और अष्टमी पर ठंडा खाना खाने से मौसमी बीमारियों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है।

बसौड़ा पूजा एक लोकप्रिय त्योहार है जो शीतला माता को समर्पित है। चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को यह त्योहार मनाया जाता है। यह आमतौर पर होली के आठ दिनों बाद होता है, लेकिन कई लोग इसे सोमवार या शुक्रवार से पहले मनाते हैं।

कहाँ शीतला अष्टमी मनाया जाता है?

उत्तर भारतीय राज्यों जैसे गुजरात, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में बसौड़ा या शीतला अष्टमी का त्योहार अधिक लोकप्रिय है। राजस्थान राज्य में शीतला अष्टमी का त्यौहार बहुत उत्साहपूर्वक मनाया जाता है। इस मौके पर मेलां और लोक संगीत कार्यक्रम भी होते हैं। भक्त इस पर्व को भक्तिपूर्वक और हर्षोल्लास से मनाते हैं। माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने से वे कई बीमारियों से बच जाते हैं।

शीतला पूजा महत्व

इस त्योहार को मनाने की परंपरा वर्षों से चली आ रही है, बच्चों को बीमारियों से बचाने और उनकी खुशहाली के लिए। इस दिन माता शीतला को बासी भोजन देने की परंपरा है और स्वयं भी बासी भोजन करना चाहिए।

नाम के अनुसार ही शीतला माता को शीतल चीजें पसंद हैं। स्कन्दपुराण में मां शीतला का पहला उल्लेख है। इनका रंग अत्यंत शीतल है और वे रोगों को दूर करने वाले हैं। यह गधा सवारी करती है, हाथों में सूप, झाड़ू, कलश और नीम के पत्ते हैं। इनकी पूजा मुख्य रूप से गर्मी में की जाती है।

शीतला सप्तमी और अष्टमी तिथियाँ

शीतला माता की पूजा कुछ जगह चैत्र महीने की सप्तमी को और कुछ जगह अष्टमी पर होती है। सप्तमी तिथि के देवता सूर्य है, जबकि अष्टमी तिथि के देवता शिव है। इन दोनों तिथियों में शीतला माता की पूजा की जा सकती है क्योंकि वे दोनों उग्र देव हैं। सिंधु ग्रंथ के अनुसार, इस व्रत की तिथि सूर्योदय व्यापिनी है।

शीतला सप्तमी दिन

पंचांग के अनुसार, चैत्र मास की सप्तमी तिथि 21 मार्च को देर रात 02:45 बजे शुरू होगी और 22 मार्च को सुबह 04:23 बजे समाप्त होगी। 21 मार्च को शीतला सप्तमी पर पूजा का शुभ समय सुबह 06:24 से शाम 06:33 तक है। साधक इस दौरान मां शीतला की पूजा कर सकते हैं।

शीतला अष्टमी का शुभ समय

22 मार्च को चैत्र मास की अष्टमी तिथि होगी, जो सुबह 04:23 मिनट पर शुरू होगी। 23 मार्च को सुबह 05:23 पर समाप्त होगा। बसौड़ा आज ही मनाया जाएगा। कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर मां शीतला की पूजा की जाती है।

शीतला सप्तमी का योग शुभ है

चैत्र मास की सप्तमी तिथि पर बहुत से मंगलकारी योग बन रहे हैं। इनमें सिद्धि योग शाम 06:42 मिनट तक है। इस समय मां शीतला की पूजा करने से अच्छे कामों में सफलता और सिद्धि मिलेगी।

शीतला सप्तमी पर रवि योग भी है। इसके अलावा, मां शीतला की सेवा करने से स्वस्थ जीवन मिलेगा। वहीं, दोपहर 03:38 मिनट तक भद्रावास है।

स्कन्द पुराण में माता शीतला की पूजा का स्तोत्र ‘शीतलाष्टक’ कहलाता है। मान्यता है कि भगवान शंकर ने इस स्तोत्र को स्वयं लिखा था। शास्त्रों में कहा गया है कि यह मंत्र भगवती शीतला को पूजना चाहिए। मंत्र:

वन्देऽहंशीतलांदेवीं रासभस्थांदिगम्बराम्।।

मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाम्।।

यदि आप अपने घर की सुख-समृद्धि को बनाए रखना चाहते हैं तो स्नान आदि के बाद 51 बार इस मंत्र का जप करना चाहिए। यह मंत्र है: ऊँ ह्रीं श्रीं शीतलायै नमः आज के दिन ऐसा करने से आपके घर में सुख-समृद्धि होगी। आपके परिवार की सेहत भी अच्छी रहेगी।

भय और बीमारी से छुटकारा पाना चाहते हैं तो इस मंत्र को 21 बार जपना चाहिए।

वन्दे शीतलां देवीं सर्वरोग भयापहम्।

यामासाद्य निवर्तेत विस्फोटक भयं महत्।।

अगर आप स्वस्थ रहना चाहते हैं। साथ ही, आपको शीतलाष्टक स्त्रोत में दी गई इन पंक्तियों का जाप करना चाहिए अगर आप लंबी आयु का वरदान चाहते हैं। पंक्तियां निम्नलिखित हैं:

मृणाल तन्तु सदृशीं नाभि हृन्मध्य संस्थिताम्।

यस्त्वां संचिन्त येद्देवि तस्य मृत्युर्न जायते।।

पुरानी मान्यता है कि शुद्ध मन से इस व्रत को करने वाली महिलाओं को शीतला देवी धन-धान्य देती है और प्राकृतिक दुर्घटनाओं से बचाती है। देश भर में मां शीतला का पर्व किसी न किसी रूप में मनाया जाता है।

ठंडा खाने का रिवाज

शीतला माता का व्रत ही शीतल भोजन करता है। इस व्रत पर एक दिन पहले बनाया गया भोजन खाना चाहिए। यही कारण है कि इस व्रत को बसौड़ा या बसियौरा भी कहते हैं। माना जाता है कि ऋतुओं के बदलने पर भोजन में परिवर्तन करना चाहिए। यही कारण है कि ठंडा खाना खाने की परंपरा बन गई है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, ठंडा खाना और शीतला माता की पूजा से संक्रमण और अन्य बीमारियां नहीं होती।

इस त्योहार को पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश के कुछ लोग बासौड़ा कहते हैं। जो कि बासी भोजन का नाम है। यह त्योहार मनाने के लिए लोग सप्तमी की रात को बासी भोजन बनाते हैं और अगले दिन देवी को भोग लगाने के बाद स्वयं खाते हैं।

कुछ जगहों पर हलवा पूरी का खाना बनाया जाता है, वहीं दूसरे जगह गुलगुले बनाए जाते हैं। गन्ने के रस से बनी खीर का भोग भी कुछ स्थानों पर शीतला माता को लगाया जाता है। यह खीर भी सप्तमी की रात को बनाई जाती है।

हिंदू धर्म के अनुसार, महिलाएं सप्तमी और अष्टमी तिथि पर माता शीतला को बासौड़ा बनाकर पूजती हैं, जो घर में सुख और शांति लाती है। माता शीतला बिना नमक की पूड़ी चढ़ावे के एक दिन पहले रात में बासौड़ा में कढ़ी-चावल, चने की दाल, हलवा बना लेती हैं। अगले दिन ये पकवान देवी को चढ़ाया जाता है। पूजा के बाद, महिलाएं अपने परिवार के साथ भोजन करती हैं।

पूर्वकथा

एक बार गांववासी प्रताप नगर में शीतला माता की पूजा कर रहे थे. पूजा के दौरान लोगों ने गर्म नैवेद्य माता शीतला को चढ़ाया। जिससे गांव में आग लग गई, लेकिन एक बुढ़िया का घर बच गया।

पड़ोसियों ने बुढ़िया से घर जलने की वजह पूछी तो उसने कहा कि उसने माता शीतला को ठंडा भोजन खिलाया था. उसने कहा कि उसने रात को भोजन बनाकर माता को भोजन खिलाया था। जिससे देवी प्रसन्न हुई और मेरे घर को आग से बचाया। गांव वालों ने बुढ़िया की बात सुनकर अगले पक्ष में सप्तमी या अष्टमी के दिन उन्हें बासी भोजन दिया और माता शीतला का बसौड़ा पूजन किया।

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