Ramakrishna Paramahamsa Jayanti 2024: फाल्गुन शुक्ल द्वितीया को महान संत, विचारक और मां काली के भक्त रामकृष्ण परमहंस की जयंती मनाई जाती है। आइये रामकृष्ण परमहंस के जीवन से कुछ रोचक बातें जानते हैं।
Ramakrishna Paramahamsa Jayanti 2024: भारत में रामकृष्ण परमहंस एक प्रसिद्ध संत, आध्यात्मिक गुरु और विचारक थे। इनकी मां काली को बहुत श्रद्धा और आस्था थी। लेकिन इसी के साथ, वे धर्मों की एकता पर भी जोर देते थे। कम उम्र से ही उन्होंने ईश्वर के दर्शन के लिए कठोर साधना और भक्ति शुरू कर दी थी। कहा जाता है कि वे मां काली को देखा था।
Ramakrishna Paramahamsa Jayanti 2024 Date: रामकृष्णz परमहंस का जन्म 18 फरवरी 1836 को फाल्गुन शुक्ल की द्वितीया तिथि को हुआ था।
रामकृष्ण परमहंस की जयंती 2024 में कब मनाई जाएगी?
रामकृष्ण परमहंस का जन्म 18 फरवरी 1836 को बंगाल के कामारपुकुर में हुआ था। यही कारण है कि 18 फरवरी को हर साल रामकृष्ण परमहंस की जयंती मनाई जाती है। 2024 में उनकी 189वीं जयंती है। रामकृष्ण परमहंस का बचपन का नाम गदाधर चट्टोपाध्याय था, लेकिन जब उन्होंने आध्यात्मिक मार्ग पर चलकर अस्तित्व संबंधी परम तत्व यानी परमात्या का ज्ञान प्राप्त किया, तो उनका नाम परमहंस पड़ा।
रामकृष्ण परमहंस का पहला आध्यात्मिक अनुभव कब हुआ?
माना जाता है कि रामकृष्ण परमहंस को आध्यात्मिक अनुभव महज 6-7 वर्ष की उम्र में हुआ था। एक दिन सुबह वे खेत में धान की संकरी पगडंडियों पर टहल रहे थे, चावल के मुरमुरे खाते हुए। उस समय मौसम कुछ ऐसा था कि मानो वर्षा अब होगी। रामकृष्ण परमहंस ने देखा कि बादलों की चेतावनी के खिलाफ भी एक झुंड सारस पक्षी उड़ान भर रहा था, और आसमान में काली घटा छा गई।
रामकृष्ण परमहंस की पूरी चेतना उस प्राकृतिक सुंदर दृश्य में समा गई, उन्हें खुद की कोई चिंता भी नहीं हुई, और वे अचेत होकर गिर पड़े। माना जाता है कि रामकृष्ण परमहंस का पहला आध्यात्मिक अनुभव ही उनकी आध्यात्मिक दिशा निर्धारित करता था. इस तरह, कम उम्र में ही उनका झुकाव आध्यात्मिकता और धार्मिकता की ओर हुआ।
रामकृष्ण परमहंस माँ काली के बहुत प्रिय थे।
वैदिक परंपरा के अनुसार, रामकृष्ण परमहंस को 9 साल की उम्र में जनेऊ संस्कार दिया गया, जिससे वे धार्मिक कार्यों और पूजा-पाठ करने के लिए अनुमति मिल गई। दक्षिणेश्वर काली मंदिर (Dakshineswar Kali Temple) कोलकाता के बैरकपुर में हुगली नदी के किनारे रानी रासमणि ने बनाया था, जिसका संरक्षण रामकृष्ण के परिवार ने किया था। इसी तरह श्रीरामकृष्ण परमहंस भी मां काली की सेवा करने लगे और पुजारी बन गए। 1856 में रामकृष्ण को मां काली के इस मंदिर का मुख्य पुरोहित नियुक्त किया गया, और इसके बाद वे माता काली की सेवा में लीन हो गए। माना जाता है कि श्री रामकृष्ण परमहंस को मां काली का प्रत्यक्ष दर्शन हुआ था।