एकादशी व्रत को सभी व्रतों में सर्वोच्च क्यों मानते हैं, षटतिला एकादशी दिलाता है इन 3 पापों से मुक्ति, तिल से करें ये 6 काम

माघ महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी को षट्तिला एकादशी कहते हैं। भक्त इस दिन तिल का छह तरीकों से भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। षटतिला एकादशी खास क्यों है?

षट्तिला का अर्थ ही छह तिल है, इसलिए इस एकादशी का नाम षट्तिला एकादशी पड़ा। तिल इस व्रत में बहुत महत्वपूर्ण है। षटतिला एकादशी पर माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करने से व्यक्ति की हर मनोकामना पूरी होती है और उसे जीवन में वैभव मिलता है।

षटतिला एकादशी का व्रत भी सुख-सौभाग्य और धन लाता है। इस वर्ष 25 जनवरी 2025 को माघ महीने की षट्तिला एकादशी है। इस दिन भगवान विष्णु को विधिपूर्वक पूजा जाएगा और षट्तिला एकादशी का व्रत रखा जाएगा।

एकादशी व्रत का क्या प्रभाव है?

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु को एकादशी तिथि बहुत प्रिय है। पौराणिक कथाओं में कहा जाता है कि श्रीकृष्ण ने स्वयं युधिष्ठिर को इस व्रत की महिमा बताई थी। एकादशी व्रत के प्रभाव से जातक को मोक्ष मिलता है और सभी काम सिद्ध होते हैं, दरिद्रता दूर होती है। मृत्यु का भय नहीं सताता, शत्रुओं का नाश होता है, धन, ऐश्वर्य, कीर्ति और पितरों का आशीर्वाद रहता है।

एकादशी व्रत को सभी व्रतों में सर्वोच्च मानते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति जन्म-मरण के बंधन से छुटकारा पाता है और मोक्ष पाता है। साथ ही, वह सभी पापों से छुटकारा पाती है।

साल भर में आने वाली प्रत्येक एकादशी अलग-अलग फल देती है। वर्ष में 24 एकादशी आती हैं। कृष्ण पक्ष की एकादशी और शुक्ल पक्ष की एकादशी हर महीने आती हैं। इससे साल में 24 एकादशी होती हैं।

षट्तिला एकादशी

पंचांगानुसार एकादशी तिथि 24 जनवरी 2025 को शाम 07 बजकर 25 मिनट पर शुरू होगी। साथ ही एकादशी तिथि 25 जनवरी को रात 08 बजकर 31 मिनट पर समाप्त होगी। ऐसे में, उदया तिथि के अनुसार शनिवार, 25 जनवरी को षटतिला एकादशी मनाई जाएगी।

षटतिला एकादशी पर छह तरह से तिल का उपयोग करें

भक्त षटतिला एकादशी पर छह तरह से तिल का उपयोग करते हैं: तिल से स्नान, तिल से तर्पण, तिल से दान, तिल से खाना, तिल से हवन और तिल से मिलाकर जल पीना। यह व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

तिल का अर्थ

पद्म पुराण कहता है कि षट्तिला एकादशी पर तिल खाना और भगवान विष्णु की पूजा करना बहुत महत्वपूर्ण है। इस दिन तिल देना पापों से छुटकारा दिलाता है। षट्तिला एकादशी पर स्नान, दान, तर्पण और पूजन तिलों से किया जाता है। तिल को इस दिन स्नान, प्रसाद, भोजन, दान और तर्पण में प्रयोग किया जाता है। तिल के बहुत सारे प्रयोगों के कारण इसे षट्तिला एकादशी कहते हैं। मान्यता है कि तिल दान करने से पापों से छुटकारा मिलेगा।

एकादशी व्रत यज्ञ से अधिक लाभदायक है

पुराणों में एकादशी को हरी वासर, यानी भगवान विष्णु का दिन बताया गया है। विद्वानों का कहना है कि एकादशी व्रत वैदिक कर्म-कांड और यज्ञ से भी अधिक लाभदायक होता है। पुराणों में कहा गया है कि इस व्रत को करने से पितरों को पुण्य मिलता है। स्कंद पुराण भी एकादशी व्रत को महत्वपूर्ण बताता है। इससे अनजाने में हुए पाप खत्म हो जाते हैं।

स्कंद पुराण में एकादशी व्रत का उल्लेख है

एकादशी पर श्रीहरि को प्रसन्न कैसे करें?

एकादशी पर ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करना चाहिए। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को भी पूजें। दोनों देवताओं को पीले चमकीले कपड़े अर्पित करें। फूलों की पूजा करें। तुलसी के पत्तों को मिठाई और मौसमी फलों के साथ मिलाएं।

षट्तिला एकादशी तीन प्रकार के पाप से छुटकारा दिलाती है

धार्मिक मत है कि सिर्फ एकादशी व्रत की कथा सुनने से भी वाजपेय यज्ञ के बराबर पुण्य मिलता है। यह व्रत आपको वाचिक, मानसिक और शारीरिक पापों से छुटकारा दिलाता है। यह व्रत कन्यादान, हजारों वर्षों की तपस्या और यज्ञों के बराबर है।

एकादशी के दिन इन बातों का ध्यान रखें

पुराणों और स्मृति ग्रंथों में एकादशी व्रत का महत्व

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